लल्ली, लल्लो , लोली : लोलिता की टोली

धर्मकन्या बालिका विद्यालय किशोरी कन्याओं का स्वर्ग है। यह है तो छोटी स्कूल --- सिर्फ 7 से 13 साल की बच्चियों के लिए, पर इसकी चर्चा पास के लड़कों के स्कूल में खूब होती है। वजह है: स्पोर्ट्स और जिमनास्टिक्स । बालिका विद्यालय की लड़कियों में और इस स्कूल के बड़ी उम्र के बीच कबड्डी और कुश्ती की जो प्रतियोगिता होती है उनमें बालिकाएँ जीत जाती हैं। यह इस विद्यालय की प्रिंसिपल बेलारानी भोसले और सहायक टीचर्स जो 8-9 खास हैं, उनके कारण है। बालिका विद्यालय की कुछ कन्याएँ बड़ी शरारती भी हैं लेकिन रूप, कला और प्रतिभावान। सुमि सिर्फ 9 साल की है पर वो मादक नृत्य मे कुशल है, सल्लो 13 की; वो व्यायाम और कुश्ती -प्रवीण है। सबसे छोटी है लल्ली, वो है 7 साल की पर तितली की तरह कुदकती-फुदकती है। खेलकूद मे तार पर जब उलटी लटकती है और जब उसकी फ्रॉक उलट जाती है तब उसकी सफ़ेद चड्डी उसके स्वास्थ्य ( healthy body contours) की गवाही देती ही देती है। विद्यालय की वाइस प्रिंसिपल बेगमजान अनारा उसका खास ध्यान रखती है। स्कूल के संरक्षक किशोरी रमण टंडन खुद अपनी देखरेख में खास लड़कियों की खास मालिश करवाते हैं और फिर बच्चियों को तरणताल में swimming प्रतियोगिता में उतारा जाता है; तैराकी के बाद ' घोड़ा चढ़ाई ' कार्यक्रम होता है। एक मजबूत घोड़े पर छोटी-छोटी बच्चियों का चढ़ना हंसी-खेल नहीं है पर टंडन साहब, बेलाजी भोसले औए बेगमजान अनारा के संयुक्त प्रयास से यह काम सिद्ध हो जाता है। घोड़े पर एक साथ 3 लड़कियां चढ़ती हैं; एक के पीछे एक चिपक-चिपक । घोड़ा हिनहिनाता है, फिर एक टांग पर खड़ा हो जाता, फिर कुदक-कुदक दौड़ मारता है। घोड़े की पीठ पर ये सीखी -सधी लड़कियां उछलती जरूर हैं पर घोड़ा दौड़ाई बंद नहीं होने देती। वर्जिश कम-से-कम कपड़ों में की जाती है , तंग (टाइट) सूती कपड़ों में । ये काम मराली मेमसाहब करवाती है। वर्जिश से मांसपेशियाँ मजबूत होती है । वर्जिश तो टांगें व जांघें पूरी चौड़ी करके , उठक-बैठक क्रिया मे की जाती है। स्तनों वाले हिस्से और चूतड़ों में बेलेन्स साधना चाहिए, नहीं तो उसकी ताकत चली जाती है; और फिर वो वर्जिश ही क्या जिसमें सांसें न फूलें और बगल में पसीना न आए। वर्जिश के बाद ' योगराज योग' होता है। इसमे स्कूल की योगिनी जंघावती टोडर लड़कियों के तन-बदन पर चढ़ विशेष ' पेट एवं नाभि क्रियोपचार ' करती है; सब बालिकाएँ पीठ के बल लेटती हैं , सपाट। फिर ऊर्ध्वाधर क्रिया-काम में उन्हें पेट के बल लेटना होता है और इसमें 'नितंब भार सुख शय्या आसन' को सिद्ध-बिद्ध किया जाता है। आयुर्वेद में 'नितंब' ( चूतड़: buttocks) को बलवान करना बताया है । अंत मे ' रस पान ' होता है। इसे 'लोला-लोली ' रस भी कहते हैं। यह प्रायः गालों व ओठों की चुम्मी -चाशनी से शुरू हो मर्मांग मर्दन मे जा समाप्त होता है।
उस दिन सल्लो और सुमी के बीच कुश्ती प्रतियोगिता हुई थी। गलत था, क्योकि 9 साल की सुमि 13 साल की सल्लों से कैसे जीतती , नतीजा सल्लों भक-भड़क से सुमि पर चढ़ उसके चूतड़ दबोच डाले; हाये राम ! बाद में उसे 11 साल की राधी से भिड़ाया ; राधी ने सल्लों की ऐसी की तैसी कर दी। उसने कुश्ती में बाजी मारी और बहुत देर तक उस पर चढ़ी रही; सिर के बाल पकड़ घसीट डाला साली को। आगे राधी की लड़कों के स्कूल के प्रतियोगी कोकला किशोर( 12 साल) से भिड़ंत हुई ; पहली पारी मे राधी ने उसे हरा दिया, बेचारे की चड्डी भी फट गयी, पर अंतिम दौर में उस लौंडे ने राधी को पटक-पछाड़ा । इतना ही नहीं वो तो जोश मे आ राधी पर चढ़ा तो ऐस्सा की दोनों की जांघें चिपट-गुत्थमगुत्था ! राधी की पेंटी की दरार फट गयी और उस खूबसूरत लौंडे का सुंदर-प्यारा लं ड ; हाये , हाये ! ! !

Published by lallololi
7 years ago
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karikalam 5 years ago
mast
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